JKNEWS18/FARIDABAD : अमृता अस्पताल फरीदाबाद ने भारत में नवजात देखभाल के क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए मात्र 5.5 माह की गर्भावस्था में जन्मीं तीन नवजात बालिकाओं को सफलतापूर्वक अस्पताल से छुट्टी दे दी दी है।
इन नवजातों का कुल वजन केवल 2.5 किलोग्राम था और ये जन्म के बाद लंबे समय तक निसु में गहन निगरानी में रहीं। अस्पताल की विशेषज्ञ टीम ने 225 दिनों तक इन तीनों शिशुओं की उच्च जोखिम वाली देखभाल की और यह सुनिश्चित किया कि इस दौरान किसी भी तरह की चिकित्सकीय जटिलता न हो. न तो कोई अस्पताल में हुआ संक्रमण, न ही मस्तिष्क में रक्तस्त्राव और न ही कोई दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्या।
यह भारत में अपनी तरह का पहला दर्ज मामला है, जब इतनी कम अवधि में जन्मे और इतने कम वजन वाले तीन नवजात जीवित रह सके हों।
गर्भावस्था की शुरुआत से ही यह मामला असाधारण था। मां, जो कि एक 46 वर्षीय विश्वविद्यालय प्रोफेसर हैं, ने दीर्घकालीन गर्भधारण की चुनौती के बाद प्राकृतिक रूप से तीन नवजातों को गर्भधारण किया और तीसरी तिमाही तक सफलतापूर्वक ले गईं।
अंतिम हफ्तों में मां की तबीयत कई संक्रमणों के कारण बिगडऩे लगी और उन्हें भी गहन चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता पड़ी। नवजातों का जन्म क्रमश: 900 ग्राम, 800 ग्राम और 800 ग्राम के वजन के साथ हुआ यह सभी वजन भारत में जीवित रहने की सामान्य सीमा से काफी नीचे माने जाते हैं।
भारत में 25 सप्ताह पर जन्मे किसी भी एकल बच्चे के जीवित रहने की संभावना लगभग 50 प्रतिशत मानी जाती है, जबकि इतनी कम कुल वजन के साथ तीन नवजातों का जीवित रहना असंभव ही समझा जाता है। फिर भी, इन तीनों शिशुओं की चिकित्सकीय यात्रा उल्लेखनीय रूप से स्थिर रही।
वरिष्ठ नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. हेमंत शर्मा के नेतृत्व में छह डॉक्टरों और लगभग 20 निसु नर्सों की समर्पित टीम ने लगातार शिफ्टों में काम करते हुए इन नवजातों को व्यक्तिगत और निरंतर देखभाल प्रदान की। उल्लेखनीय रूप सेए इनमें से किसी भी शिशु को यांत्रिक वेंटिलेशन की आवश्यकता नहीं पड़ी जो इस उम्र में एक असाधारण बात है।
केवल एक शिशु को सतही सर्फेक्टेंट की एक खुराक और एक रक्त आधान दिया गया। सभी तीनों शिशुओं को जन्म के नौ घंटे के भीतर आहार देना शुरू कर दिया गया था और चौथे दिन तक वे पूरी तरह से मां के दूध पर आ गए जो कि अंतरराष्ट्रीय मानकों से भी तेज़ है।
पूरे 225 दिनों की देखभाल के दौरानए तीनों नवजातों को किसी भी प्रकार का अस्पतालजनित संक्रमण नहीं हुआ और न ही मस्तिष्क में रक्तस्त्राव पाया गया। डॉ. हेमंत शर्मा वरिष्ठ नियोनेटोलॉजिस्ट अमृता अस्पताल ने कहा कि ये तीन बेहद नन्हीं जानें थीं, जिन्हें हमारी टीम स्नेहपूर्वक त्रिदेवी कहकर बुलाती थी।
जन्म के समय इनका आकार और उम्र दोनों ही उम्मीद से बहुत कम थे। लेकिन फर्क यह पड़ा कि हमने बुनियादी देखभाल को बहुत गंभीरता से लिया गैर आक्रामक समर्थन, समय पर मां का दूध देनाए और सतत् निगरानी। हमारी पूरी टीम प्रत्येक दिन इनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रतिबद्ध रही।
हालांकि मां को प्रसवोत्तर निमोनिया और अन्य जटिलताओं के चलते आईसीयू में भर्ती होना पड़ा, फिर भी उन्होंने नवजातों को मां का दूध उपलब्ध कराने का प्रयास जारी रखा जो इनकी पोषण संबंधी सफलता और प्रतिरक्षा का प्रमुख आधार रहा
आवश्यकता पडऩे पर डोनर मिल्क का भी सहारा लिया गया, जो यह दर्शाता है कि भारत में ह्यूमन मिल्क बैंकिंग की व्यवस्था को और मजबूत बनाने की कितनी आवश्यकता है। 46 वर्षीय मांए ज्योत्स्ना ने कहा कि मैं अमृता अस्पताल की पूरी टीम की अत्यंत आभारी हूं।
मेरी बेटियों के जन्म के साथ ही मुझे यह विश्वास हो गया था कि वे सुरक्षित हाथों में हैं। डॉक्टरों और नर्सों ने न केवल अपने कौशल का परिचय दियाए बल्कि अपनी करुणा से भी हमें संबल दिया।
जब मैं खुद बीमार थी, तब भी उन्होंने मुझे मेरे बच्चों से जुड़े रहने में मदद की, दूध निकालते रहने के लिए प्रोत्साहित किया और हर कदम पर हमारा साथ दिया। हम बस आभार व्यक्त कर सकते हैं कि तीनों बेटियां अब स्वस्थ हैं और घर पर हैं।